बुधवार, 27 मई 2015

कृपा सिन्धु सदगुरु जो समझा रहे हैं ...

कृपा सिन्धु सदगुरु जो समझा रहे हैं
वो वाणी भुलाना महामूढ़ता है
बड़े भाग्य से ऐसा अवसर मिला है
निरर्थक बिताना महामूढ़ता है

जो बड़भागी गुरु में है प्रीति बढ़ाते
इन्ही की ही मूरत को मन में बसाते
वही सच्ची शांति व आनंद पाते
ये भक्ति न पाना महामूढ़ता है

ये संगी ये साथी ये सुख ये नजारे
सदा न रहेंगे ये साथ हमारे
छूटेंगे हमसे जो भी हमको प्यारे
इन्ही को रिझाना महामूढता है

हृदय में है गुरु का जो दीदार करते
कभी न गुरु से है फरियाद करते
वो बिन मांगे अपनी है झोली ये भरते
ये रहमत न पाना महामूढता है

गुरु ज्ञान सत्य सदा है रहेगा
जगत झूठा कल्पित है न ये टिकेगा
जो पाया है नश्वर वो कब तक रूकेगा
इसे अपना कहना महामूढता है

ये अनमोल मानव तन हमको पाया
क्यूँ इसका न भरपूर लाभ उठाया
क्यूँ भक्ति बिना इसको बिरथा गवाँया
यूँ अवसर बिताना महामूढता है

जो दिखता है आँखों से कल्पित है सारा
जो देखे, वो दृष्टा है, साक्षी है प्यारा
क्यूँ हमको न होता है सच ये ग्वारा
ये सत्य भुलाना महामूढता है

जिसने भी गुरुवर की भक्ति है पाई
हृदय में है प्रेम की ज्योति जगाई
उन्ही के ही जीवन में खुशियाँ है छाई
ये आनंद न पाना – – –

गुरु दर्श जैसा तो सुख न कही है
गुरु ज्ञान बिन दुख से मुक्ति नही है
गुरु जो दिखाये वो राह सही है
इसी पे न चलना – – –

तेरे दिल में है गर श्रद्धा वो ऊँची
तू पायेगा गुरुवर से अनमोल पूंजी
तूझे देंगे गुरुवर वो भोग की कुंजी
ये पूँजी न पाना कृपा सिन्धु सदगुरु जो समझा रहे हैं
वो वाणी भुलाना महामूढ़ता है

बड़े भाग्य से ऐसा अवसर मिला है
निरर्थक बिताना महामूढ़ता है
जो बड़भागी गुरु में है प्रीति बढ़ाते
इन्ही की ही मूरत को मन में बसाते
वही सच्ची शांति व आनंद पाते
ये भक्ति न पाना महामूढ़ता है

ये संगी ये साथी ये सुख ये नजारे
सदा न रहेंगे ये साथ हमारे
छूटेंगे हमसे जो भी हमको प्यारे
इन्ही को रिझाना महामूढता है

हृदय में है गुरु का जो दीदार करते
कभी न गुरु से है फरियाद करते
वो बिन मांगे अपनी है झोली ये भरते
ये रहमत न पाना महामूढता है

गुरु ज्ञान सत्य सदा है रहेगा
जगत झूठा कल्पित है न ये टिकेगा
जो पाया है नश्वर वो कब तक रूकेगा
इसे अपना कहना महामूढता है

ये अनमोल मानव तन हमको पाया
क्यूँ इसका न भरपूर लाभ उठाया
क्यूँ भक्ति बिना इसको बिरथा गवाँया
यूँ अवसर बिताना महामूढता है

जो दिखता है आँखों से कल्पित है सारा
जो देखे, वो दृष्टा है, साक्षी है प्यारा
क्यूँ हमको न होता है सच ये ग्वारा
ये सत्य भुलाना महामूढता है

जिसने भी गुरुवर की भक्ति है पाई
हृदय में है प्रेम की ज्योति जगाई
उन्ही के ही जीवन में खुशियाँ है छाई
ये आनंद न पाना – – –

गुरु दर्श जैसा तो सुख न कही है
गुरु ज्ञान बिन दुख से मुक्ति नही है
गुरु जो दिखाये वो राह सही है
इसी पे न चलना – – –

तेरे दिल में है गर श्रद्धा वो ऊँची
तू पायेगा गुरुवर से अनमोल पूंजी
तूझे देंगे गुरुवर वो भोग की कुंजी
ये पूँजी न पाना महा – – –
न इसको कमाना – – –

न पूरी कभी होती, दिल की है चाहत
सदा बढ़ती रहती है मिलती ना राहत
गुरु शांति तृप्ति को देते है दौलत
ये तृप्ति न पाना –
न इसको कमाना – – –

न पूरी कभी होती, दिल की है चाहत
सदा बढ़ती रहती है मिलती ना राहत
गुरु शांति तृप्ति को देते है दौलत
ये तृप्ति न पाना
कृपा सिन्धु सदगुरु जो समझा रहे हैं
वो वाणी भुलाना महामूढ़ता है

बड़े भाग्य से ऐसा अवसर मिला है
निरर्थक बिताना महामूढ़ता है
जो बड़भागी गुरु में है प्रीति बढ़ाते
इन्ही की ही मूरत को मन में बसाते
वही सच्ची शांति व आनंद पाते
ये भक्ति न पाना महामूढ़ता है

ये संगी ये साथी ये सुख ये नजारे
सदा न रहेंगे ये साथ हमारे
छूटेंगे हमसे जो भी हमको प्यारे
इन्ही को रिझाना महामूढता है

हृदय में है गुरु का जो दीदार करते
कभी न गुरु से है फरियाद करते
वो बिन मांगे अपनी है झोली ये भरते
ये रहमत न पाना महामूढता है

गुरु ज्ञान सत्य सदा है रहेगा
जगत झूठा कल्पित है न ये टिकेगा
जो पाया है नश्वर वो कब तक रूकेगा
इसे अपना कहना महामूढता है

ये अनमोल मानव तन हमको पाया
क्यूँ इसका न भरपूर लाभ उठाया
क्यूँ भक्ति बिना इसको बिरथा गवाँया
यूँ अवसर बिताना महामूढता है

जो दिखता है आँखों से कल्पित है सारा
जो देखे, वो दृष्टा है, साक्षी है प्यारा
क्यूँ हमको न होता है सच ये ग्वारा
ये सत्य भुलाना महामूढता है

जिसने भी गुरुवर की भक्ति है पाई
हृदय में है प्रेम की ज्योति जगाई
उन्ही के ही जीवन में खुशियाँ है छाई
ये आनंद न पाना – – –

गुरु दर्श जैसा तो सुख न कही है
गुरु ज्ञान बिन दुख से मुक्ति नही है
गुरु जो दिखाये वो राह सही है
इसी पे न चलना – – –

तेरे दिल में है गर श्रद्धा वो ऊँची
तू पायेगा गुरुवर से अनमोल पूंजी
तूझे देंगे गुरुवर वो भोग की कुंजी
ये पूँजी न पाना महा – – –
न इसको कमाना – – –

न पूरी कभी होती, दिल की है चाहत
सदा बढ़ती रहती है मिलती ना राहत
गुरु शांति तृप्ति को देते है दौलत
ये तृप्ति न पाना – – –

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