गुरुवार, 28 मई 2015

शहीद

सर्दी गर्मी भूख प्यास
मुस्कुराकर झेल जाते हैं
जो तुम देते हो देश के नारे
वो उस नारे पर मिट जाते हैं

मांश और खून आज भी
जमा हैं उन पहाड़ियों पर
दो ईंटे गुमनाम लगी हैं
इन मौत के खिलाडियों पर

पीतल के तमगों से मान
हम उनका बढ़ा रहे है
जो काटकर गर्दन अपनी
माँ भारती को चढ़ा रहे है

रक्तभरा बदन जब किसी
माँ के सीने लगता है
दर्द नहीं सह सकता सीना
मौत सा दिल तड़पता है

उसकी लिखी चिट्ठी
बक्से में धरी रह गई
बतलाऊंगा जब लौटूंगा
बन्ध वो जुबान हो गई

तहस नहस हो गई जिंदगी
उसके बच्चे मासूम की
कौन कमी पूरी करेगा
बिछुड़े बाप मरहूम की

पाल पोसकर जिस बाप ने
एक नौजवान को कुर्बान किया
शहीद को परिभाषित न करके
उस विश्वाश का अपमान किया

दुखी हूँ मै और हैरत भी
इन संसद में सोने वालों पर
कुर्बानियों का हिसाब करके
शहीद तय करने वालों पर

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here शहीद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें