रविवार, 17 मई 2015

जब जब मैंने आँसू बहाये

जब जब मैंने आँसू बहाये
अन्तर्मन में सब सुख पाये।

सुख पाऊँ मैं दुख अपनाकर
दुख को अपना मीत बनाकर
सबके आँसू नयन नीर बन
मेरे उर में, लगे तीर बन

तब तब मैंने आँसू बहाये
अन्तर्मन में सब सुख पाये।

आँसू मेरे प्रीत मिलन के
या विरहा के, नम अँखियन के
नयन डोर से बँधे हुये हैं
पिय की यादें भरे हुये हैं

जब चाहे तब खूब बहाये
अन्तर्मन में सब सुख पाये।

हैं ये बेटे सब सावन के
छौने भादों के आँगन के
हैं शबनम से गोरे गालों के
या अबीर से रुखसारों के

हर पल आँसू रंग बहाये
अन्तर्मन में सब सुख पाये।

है गरीब तो रो भी लेगा
आँसू मोल कहाँ से लेगा
है अमीर का आँसू मँहगा
बहता भी है, लंगड़ा लंगड़ा

क्यूँकर वह ये आँसू बहाये
अन्तर्मन में सब सुख पाये।

बिन आँसू के कन्या क्वाँरी
बिन अँसुअन के, अँखियाँ प्यासी
पनघट पनघट बतियाँ रोयें
सबके दुखड़े, पल में धोयें

काजल प्यारी जब आँसू लाये
अन्तर्मन में सब सुख पाये।

सुख चाहूँ तो सुख को बाँटूँ
दुख सबका खुद मैं अपनाऊँ
है आँसू यह हाला ऐसा
विष अमृत की धारा जैसा

विषधर जैसे षिवकंठ सुहाये
अन्तर्मन में सब सुख पाये।

कुछ आँसू से पुण्य कमाऊँ
पाप मुक्ति कुछ मैं पा जाऊँ
कुछ तो कन्यादान करावें
कुछ मरघट में, मधु बरसावें

जो पर पीड़ा देख बहाये
अन्तर्मन में सब सुख पाये।
—- ——- —- भूपेंद्र कुमार दवे
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