कुछ अनसुलझे प्रश्न……… (कविता)
                          जब  मात्र-सतात्मक   है   समस्त   सृष्टि   ,
                             धरती   है माता ,प्रकृति  है  माता ,
                            गंगा  मईया  व्  समस्त  नदियाँ  ,
                            वोह भी हैं अपनी  मातायें,  गौ  माता ,
                           निज  जननी .   और आदि  शक्ति
                           करे  अपने विभिन्न रूपों  में  संचालित  समस्त सृष्टि ,
                           नारी   के  इन   दिव्य  व्  विस्तृत  रूपों  में  ,
                           इनके   दया  ,प्रेम  ,करुणा  ,
                            सहनशक्ति  ,सहजता ,
                           और   निस्वार्थ   सेवा   जैसे   अलौकिक  गुणों  में, ,
                           जब   समाहित   है  सम्पूर्ण  विश्व
                            के सञ्चालन  की  शक्ति।
                           यह  विश्वसनीय   और  प्रमाणिक
                            तथ्य  है न की  असत्य ,
                          यदि   होता  शत-प्रतिशत  नारी  का
                          शासन  समस्त  सृष्टि में ,
                          तो  सारे जगत  में होती शांति ,प्रेम ,
                           भाईचारे , सुख-  ऐश्वर्य  की  वृष्टि।
                           ईश्वर  ने   तो   प्रकृति  व् आदि-शक्ति  के सहयोग  के लिए ,
                           किया  पुरुष  को    मनोनीत ,
                           और  उसे भी दी  असंख्य  शक्तियां ,
                           गुण –  बल से  किया  सम्मानित।
                            तत्पश्चात   नारी  ने   भी   दिया
                            उसे   अपने हर रूपों  में  सहयोग ,
                            आदर ,प्रेम  से  किया अपने जीवन  में समाहित।
                            परन्तु  क्या हुआ ?
                            पुरुष  तो भूल गया  अपना  स्थान,  कर्तव्य  व्   मर्यादा ,
                             और  स्वामी  बन गया  नारी का ,
                             और  अधिकार  में कर लिया  समस्त सृष्टि   को .
                             अधिकार  उसने किया  तो क्या मगर उसने तो ,
                              नष्ट  कर दिया  ,कलंकित  कर दिया ,
                             धरा ,नदियाँ ,  गौ ,प्रकृति  अर्थात  समस्त सृष्टि  को.
                            जिसका   परिणाम  हम   युगों  से देख रहे हैं ,
                            और   भविष्य में   भी  देखना   हमारी नियति है.
                            यह  कैसा  न्याय ?
                            पुरुष  के  एकाधिकार   ने है जन्म  दिया  पितृ-सत्तात्मकता को ,
                            सबला  , अत्यधिक  गुणवान व् आदि शक्ति का
                            स्वरूप  होकर  भी  नारी  कहलाये,
                           अबला , निर्गुणी।  अशक्त और  पुरुष  की  परिचायिका।
                           अधर में डाल दिया  गया  मात्र- सत्तात्मकता  को .
                           कई   अनसुलझे  प्रश्न  है    हे प्रभु , तुम्हारे  समक्ष।
                          यह जो परिस्थितियां   हैं  मेरे  समकक्ष ,
                           क्या कहूँ  मैं   तुम्हारी  न्यायमिति  को?   

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