गुरुवार, 21 मई 2015

आज भी दीप जलाता हूँ

ग़ज़ल भी उसी की कहता हूँ
सरगम उसी की गाता हूँ
रह गयी जो अधूरी सी वो
कहानी हर बार सुनाता हूँ

कहते हैं वफ़ा पागलपन है
क्यूँ झूठे ख़्वाब दिखाता हूँ
पर उनके छूए पत्थरों से
रोज़ बहुत बतलाता हूँ

जो गुज़र गए वो लौटते नहीं
क्यूँ बार बार दोहराता हूँ
मैं हूँ की गुज़रे क़दमों पर उनके
आज भी दीप जलाता हूँ

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