गुरुवार, 28 मई 2015

उधार की सांसें

साँसों को माँगा है उधार
जिंदगी से हमने
अब तो बस उधारी पर चल रहा हूँ,

हमने तो अपने हिस्से का जीवन
कब का खर्च है कर दिया
इंतिज़ार में तेरे
इंतिज़ार है तेरे वापस आने का,
वादा जो किया था
तुमको मिलने का फिर से,
बोला था इंतज़ार करेंगे हम,
इसी खातिर जीये जा रहा हूँ,
साँसों को माँगा है उधार
जिंदगी से हमने

सांसें उखड़ने लगी हैं अब
शायद कुछ ही दिनों का और मेहमान हूँ,
सावन आएगा तो बहुत सतायेगा
हर बार की तरह
तेरी यादों को बार-बार बारिश के पानी के साथ
मेरे कमरे में लाएगा
मैं आंगन में बैठा भीगता रहूँगा
तेरा एहसास महसूस करता रहूँगा
हवा में तेरी खुशबू होती है
मैं उसी के साथ जीता रहूँगा
पर यकीन मान
इस बार का निमोनिया शायद में झेल ना पाँऊ
सांसें उखड़ने लगी हैं अब
और तेरा इंतज़ार शायद ना कर पाँऊ

उधार पर भला वैसे भी कोई कितना चला है
मुझको पता है अब तू नहीं आयेगा
जिंदगी दर्द देती है अब
मौत लगती एक दवा है
दफ़न हो जाने पर कब्र पर तुम ना आना
मुझको वहां ना रुलाना
कब्र में मुझको आराम से सो जाने देना
नींद कई सालों से पूरी नहीं हुई है

साँसों को माँगा है उधार
जिंदगी से हमने
तेरे इंतिज़ार की खातिर…

#लेखक- चंद्रकांत सारस्वत
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