बुधवार, 20 मई 2015

देखो कौन कहाँ मिलता है?

जैसी जहां की मिट्टी मौसम,
वैसा फूल वहाँ खिलता है,
जीवन के लंबे रस्ते में
देखो कौन कहाँ मिलता है ? …..

टूटी फूटी ऊबड़ खाबड़
यादों का कमजोर खंडहर ,
मेघ अभ्र सा रूप बदलता
साथ साथ अपने चलता है ,
याद सदा किसको रहता है ,
देखो कौन कहाँ मिलता है ?…..

नज़रें झुका कर,रूप बचा कर ,
शरमा कर कोई मिलता है,
मिलता कोई बांह पसारे,
गले लगा कर भी मिलता है ,
प्रेम कोष रिक्त हो जिसका
उसको कहाँ जहां मिलता है
देखो कौन कहाँ मिलता है? ……

शीर्ष ध्येय की पगडंडी पर
चलते रहना भ्रमित न होना ,
घर का आँगन,माँ का आँचल ,
दृग पलकों से बहता काजल,
मोह पाश बन कर छलता है,
देखो कौन कहाँ मिलता है?….

सागर से स्थिर चितवन में
प्यास बुझाने नदियां आती ,
प्यासे मोती कवच तोड़ते
और कहीं गरल घुलता है ,
सागर का संयम कहता है ,
देखो कौन कहाँ मिलता है ?…

अनिल कुमार सिंह
9336610789
आकाशवाणी फ़ैज़ाबाद

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here देखो कौन कहाँ मिलता है?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें