नभ जल रहे थल जल रहे,
  सब जल रहे सब चल रहे,
  चिड़िया चिल्लाती आकाश में,
  सूरज के तिरछे प्रकाश में,
सुखी नदियां जली दिशायें,
  जलती पत्ती पेड़ शाखाएँ
  जली उभरी सभी लताएँ
  और उपवन जले उपहास में
  सूरज के तिरछे प्रकाश में,
है नीर जले तट-तीर जले,
  मानव जिस्म चिर-चिर जले,
  है गुर जले, जली गौराएँ
  किरणों की तेज बरसात में
  सूरज के तिरछे प्रकाश में,
है गिरिजा मस्जिद पीर जले,
  देवस्थल श्रिष्टि शील जले,
  है उजियारा जले अंधियारे संग
  और जले सब माह जेठ बैशाख में,
  सूरज के तिरछे प्रकाश में,
अमोद ओझा (रागी)
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