शुक्रवार, 15 मई 2015

माँ की रचना

ममता त्याग बलिदान , इत्यादि शब्दों को सुनते ही सिर्फ एक ही शब्द जहन में आता हैं और वह है – माँ। दोस्तों शब्दों के हिसाब से यह शायद बहुत ही छोटा शब्द है परन्तु अस्तित्व के हिसाब से तो यह शब्द शायद भगवान की बनाई इस श्रिष्टि से भी कहीं बड़ा है। क्योंकि माँ का अर्थ है त्याग, माँ का अर्थ है ममता और बहुत कुछ । कहा जाता है की माँ के चरणो मे स्वर्ग है. बिलकुल सही है। परन्तु मेरे एक प्रशन का आप उत्तर दीजिए – क्या माँ का अस्तित्व बिना बच्चों के संभव है। नहीं न ! जी हाँ – एक स्त्री के लिए उसका परिवार एक बगिया के समान है और बच्चे उस बगिया के सुन्दर फूल। माँ तभी माँ है जब उसके ममता को तृप्त करने के लिया उसके पास बच्चे हो।
आसमान में बैठा ईश्वर सोच रहा दुनिया रच लूँ।
खली समय बीतने का सामन इकट्ठा मैं कर लून। ।

बैठे – बैठे सांचे मे कुछ मिट्टी उसने यूं डाली।
नटखट पन का मंत्र फूँक काया की रचना कर डाली। ।

तन कोमल मन चंचल था आँखे उलझन से भरी पड़ी।
सांवली सूरत और भोलापन ‘बालक’ की रचना कर डाली। ।

उधम मचा कर बालक ने जब किया नगर को उथल पुथल।
आसमान में बैठे ईश्वर सोच रहे थे इसका हल। ।

तब ईश्वर ने ध्यान लगा साँचे मे मिट्टी फिर डाली।
ममता का जल डाल डालकर माँ की रचना कर डाली ।।

माँ के आँचल में चुप बालक ने चैन का सांस लिया ।
ईश्वर ने नत मस्तक होकर शत शत बार प्रणाम किया ।
शत शत बार प्रणाम किया ।

संगीता गंभीर

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