एक पत्र ईश्वर के नाम (कविता)
                         हे   प्रभु  !कहो   तुम्हारा   क्या हाल है ,
                           तुम  कहाँ हो ?  हम  हो रहे  बेहाल हैं.
                        कहो  तुम्हारे  बैकुंठ  का मौसम  है कैसा ?
                          इस मृत्युलोक में हर मौसम है ज़हर जैसा .
                       तुम्हारे वहां  तो होता होगा  नित आनंद ही आनंद ,
                         मगर   हम तो  हैं  रहते ग़मों  के पिंजरे  में  बंद .
                       तुमने जो बनायीं   थी  दुनिया ,अब  वैसी  ना रही ,
                         इसकी खोज-खबर  लेने की  तुम्हें  भी  फुर्सत न रही .
                     कहाँ  हो तुम ,किधर  हो छुपे  हो ,कुछ  तो कहो ,
                       हमारी   हालत  पर प्रभु ! ध्यान   तो  कुछ धरो .
                      तुम्हारे  निरीह   अंश प्रकृति  व्   जिव-जंतु समस्त ,
                        समूल  नष्ट कर  मनुष्य रूपी दानव  होरहे   मस्त ,
                       कब तक  और  करवाओगे   प्रतीक्षा ,
                         लोगे  और कितने  इम्तेहान ?
                         तुम्हारे   विलंब  से  हे प्रभु !
                        हम हो रहे  हैं  बड़े परेशान .
                      नित्य  नयी  विपदाओं  से  टूटकर  हार  कर  ,
                        लिखा   है  हमने तुम्हें  यह  पत्र ,
                        कृपया   प्रतिउत्तर   अवश्य देना  ,क्योंकि ,
                       वेदना  है हमारी यह नहीं  कोई मामूली  पत्र. 

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