गुरुवार, 28 मई 2015

अल्फाजो में... ( ग़ज़ल )

    1. चलो उतार देते है ख्वाहिश तेरी कोरे कागजो में !
      मुझे मालुम, तू खोजे खुद को मेरे अल्फाजो में !!

      तमन्ना हाल-ऐ-दिल जो छुपाये बैठे हो कब से !
      अश्को से लिख देंगे जो बयान न हो लफ्जो में !!

      माना के पसंद नही तुमको अपना हमराज कोई
      फिर क्यों ढूंढे, ये तेरी नजर उनको रहगुजारो में

      एक हरफ से कर दे तेरे ख्यालातों को बे नकाब !
      संजो के रक्खा है जिन्हे तुमने दिल में नाजो से !!

      करने से इंकार भला हकीकत कहाँ छुप पाती है !
      वो कौन शै है जो दौड़े लहू के नाम से नब्जो में !!
      !
      !
      !
      ( डी. के. निवातियाँ )

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