सर्दी गर्मी भूख प्यास
  मुस्कुराकर झेल जाते हैं
  जो तुम देते हो देश के नारे
  वो उस नारे पर मिट जाते हैं 
मांश और खून आज भी
  जमा हैं उन पहाड़ियों पर
  दो ईंटे गुमनाम लगी हैं
  इन मौत के खिलाडियों पर 
पीतल के तमगों से मान
   हम उनका  बढ़ा  रहे है
  जो काटकर गर्दन अपनी
  माँ भर्ती को चढ़ा रहे है 
रक्तभरा बदन जब किसी
  माँ के सीने लगता है
  दर्द नहीं सह सकता सीना
  मौत सा दिल तड़पता है 
उसकी लिखी चिट्ठी
  बक्से में धरी रह गई
  बतलाऊंगा जब लौटूंगा
  बन्ध वो जुबान हो गई 
तहस नहस हो गई जिंदगी
  उसके बच्चे मासूम की
  कौन कमी पूरी करेगा
  बिछुड़े बाप मरहूम की 
पाल पोसकर जिस बाप ने
  एक नौजवान को कुर्बान किया
  शहीद को परिभाषित न करके
  उस विश्वाश का अपमान किया  
दुखी हूँ मै और हैरत भी
  इन संसद में सोने वालों पर
  कुर्बानियों का हिसाब करके
  शहीद तय करने वालों पर 

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