।दोहे।प्रेम के प्रति।
प्रेम पियासा है जगत पशु पंछी नर देह ।
राम’ मिले पुनि लौटि के नेह देहे से नेह ।।
निज मन स्थिर प्रेमधन नयनो से प्रवाह ।
राम’ नयन में यों बसे ज्यो सांसो में आह ।
निज नेहो के बोध का चेहरा है प्रतिरूप ।
राम’ उतरकर हृदय छवि फैली जैसी धूप ।
आत्मसमर्पण प्रेम का विश्वासो के संग ।
राम’ बढे समरूप में ज्यो शरीर के अंग ।।
मातृभूम निज देश हित भक्ति सखा परिवार ।
राम’ अतिथि को दीजिये शुद्ध हृदय से प्यार ।।
..@राम केश मिश्र
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