प्रकृति ने भोजन करने के नियम बनाये,
जितनी हो भूख, उतना ही खाएं,
जानवर भी पेट भरने पर,
दूसरों के लिए भोजन छोड़ देते है,
पर भोजन व्यर्थ नहीं होने देते ।
आपका छोड़ा भोजन व्यर्थ हो जायेगा,
और कहीं कोई प्राणी भूखा ही सो जायेगा,
भोजन है जीवन आधार,
जिसपर सबका सामान अधिकार,
आप कहेंगे, धन है मेरा सो भोजन मेरा,
खाऊं या व्यर्थ करूँ , अधिकार है मेरा,
हे धरती के सर्वोच्च प्राणी,
यदि धन है तुम्हारा तो केवल धन ही खाएं ,
पर भोजन को न व्यर्थ गवाएं ।
देख किसी समारोह में विविध स्वादिष्ट व्यंजन ,
रसना पर नियंत्रण पाएँ,
वही परोसें जो ह्रदय को सर्वाधिक भाएं,
हो सके तो समारोह को ही सरल बनायें,
और बचे धन से भूखों को भरपेट भोजन करवाएं,
पर भोजन को न व्यर्थ गवाएं ।
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