तेरे नैनों की साज़िश…..
यह तेरे नैनों की साज़िश थी या नज़रों का कोई छलावा
ज़रा ज़रा सा जो महसूस हुआ यह वक्त का था कोई दिखावा
इतना ख़ास किसीने समझा न होगा जहाँ में बस तेरे अलावा
प्यार से रूबरू करवाने चला तेरे दिल का ऐसा ख़ूबसूरत बुलावा !!
कभी खामोश रहके मानो तुझे सुकून से याद करते
किसीके आहट पर युहीं कभी तुझे देखने पीछे मुड़ते
गैरों का सिला क्या होगा ऐसे सोच की कशिश हमें नहीं
यह दिल तेरे लिए जबसे धड़का इतना ऐतबार फिर किसीसे हुआ नहीं !!
हर रोज़ हुए आमने – सामने उसी राह पर कितनी बार
ना बातों का ना वादों का शिकवा था ना इंतज़ार
सीख लिया हमने ज़िंदगी से प्यार के हर एहसास को निभाना
तकदीर से बे जुड़ना नहीं हमें चाहत को अपना वजूद है माना !!
फासलों में भी मेरे जस्बात बिखरकर भी है गुनगुनाते
गँवारा लगते वह पल गर कभी इज़हार कर पाते
हम मीकर भी ना मिले ऐसा ज़माने को कहने दो
तन्हाई का तजुर्बा हो गया कुछ यादों को भी गुनाह करने दो !!
चलता रहा ज़िन्दगी का सफर किसी हमसफ़र का हाथ थामने
रोज़ाना तो हकीकत सहारा दे जाए फिर मोहब्बत से जुड़ने के बहाने
दिल तो आज भी धड़के प्यार में के हर लम्हा भी गवाह बन जाता है
यह तेरे नैनों के साज़िश ही थी के आज भी अक्सर वफ़ा बन जाता है !!!
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