दर्द का साथ मै भी निभाता चला गया
  हसते रोते खुद राह दिखाता चला गया
करवटे बदली जब मैने रातके सायेमे
  मै सपनो का घरोंदा बनाता चला गया
  कुछ तुटे कुछ जुड़े कुछ अफ़साने बने
  सपनोको ख्वाहिशोसे सजाता चला गया
देखी आईने मे जब हकीकत-ए-जिंदगी
  यकीनसे जुडी उम्मीदे जगाता चला गया
  उम्मीदे आती रही जमानेके पैरो तले
  उन्ही उम्मीदो को फिर चलाता चला गया
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  शशिकांत शांडिले (SD), नागपूर
  भ्र. ९९७५९९५४५०
  दि.१३/१२/२०१५

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