बुधवार, 23 दिसंबर 2015

इश्क तुम ...... रूपल जौहरी

जानते हो
तुम्हे इश्क क्यों कहती हूं
ये जो दुनिया है न
बड़ी दिलफरेब सी है
फरेब की धुंध ..
कोहरे की तरह
आँखो पर चढ़ा कर रखती है
पर जो तुममे देखा न..
वो कभी कहीं दिखाई नहीं दिया..
सारी धुंध तुमसे मिलकर
जाने कब छंट गई
पता ही नहीं चला..
अब एक रोशनी चमकती दिखती है..
तुम अपने से हो …. मेरा यकीन हो..
तुम साथ होते हो तो उस पल को जीती हूं
दूर हो तो इन्तजार को पीती हूं
और दूरी भी कितनी ?
बस एक आवाज भर जितनी..
हर पल यही लगता है
तुम यहीं हो कहीं..
मेरे आसपास …
बस एक पुकार …
और फिर हमारी बातें
हर बार की तरह..
पिछली अधूरी रह गई कड़ी से
जुड़कर शुरू होती बातें..
सबके साथ खतम हो जाती हैं
सिर्फ तुम्हारे साथ चलती हैं
एक सांस से दूसरी सांस की तरह…
…रू…

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