शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

मेरा इश्क मेरी इबादत

सुनो… मेरी इबादत
अक्सर मैं घबरा जाती हूं
बेवजह यूं ही..
मुहब्बत मे जितनी ताकत मिलती है न
उससे सौ गुना खो देने का डर भी..
सूफियाना इश्क क्या होता है
ये मैं नहीं जानती…
मेरा इश्क तो मुहब्बत वाला है
जो तुमसे धड़कता भी है
और तुमसे सहमता भी है…
उस दिन चाँद को साथ देखने की तुम्हारी जिद
मुझे छत तक खींच ले गई..
और मैं संग ले गई तुम्हारी तस्वीर
तुम मीलो दूर उधर चाँद तक रहे थे
इधर मैं तुम्हे ..
चाँद से दिल लगाना मुझे मंजूर नहीं
ये आवारा आता ही जाने के लिए है..
सुनो तुम चाँद मत बनना…
अब मुझ तक आ गए हो
तो मंजिल बन यहीं रुक जाना..
तुमसे शायद कभी कह न पाऊं
तुम्हारा नाम आयत बनके
मुझ मे बस गया है..
तुमसे बेतहाशा मुहब्बत
मेरे दिल मे धड़कती है…
तुम्हारे हाथों की छुअन
लिम्का की उस बोतल मे महफूज़ है..
जिन्हे तुमने देते हुए कहा था…
कि इसे पीने से अच्छा feel होगा
मुझे लिम्का कभी पसन्द नहीं थी
लेकिन मैने उसे पीते हुए सुकून जिया
और वो तुम्हारी कहानी के पन्ने
जो थमा दिए थे तुमने बेवजह
अब वजह बनकर रहते है मेरे साथ
जानते हो…
उनसे फूटती है तुम्हारी छुअन की
भीनी सी खुशबू…
….रू….

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