लोग नाक भौहें चढाते है वैश्या के नाम से
  फिर भी कोठे पर भीड नजर आती है
  उनकी आग कभी नही बुझती
  एक से भर जाये मन, तो दूजी फिर आजाती है
  उनकी तो इज्जत नही, पर तुम तो इज्जतदार हो
  वो तो बेबस है भूख से, तुम तो ना कर्जदार हो
  गन्दगी इतनी ना बढती, जो ना तुम भूखे होते
  वैश्याखाना ना होते जंहा मे, जो तुम ना अपना नियंत्रण खोते
  कलंकनी है वो, तो शान तुम्हारी भी झूठी है
  वो भ्रष्ट है अपने धर्म से , तो राह तुम्हारी भी टूटी है
  ना कम तुम हो, ना बिलकुल निर्लज्ज वो
  संस्कृति दूषित हो आयी हमारी, वैश्याखाना बढ रहे है जो ।
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015
वैश्याखाना
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