मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

कविता।भूखा मानव करे अलाप।

भूखा मानव करे अलाप

भूखा मानव करे अलाप
वह भूख नही पर आज
भोजन बना समाज
धन ,वैभव की होड़ ,गठजोड़
सम्बन्धों में घात
छद्मवेश में दहता रहता
पगडण्डी के उस पार ।।

मानवता के अंकुरण
भौतिकता में दबी सभ्यता
प्रगति की नव्यता
काट रह है फसल दुःखों की
भरा हृदय भण्डार
कुचल गयी सज्जनता
पगडण्डी के उस पार ।।

अहंकार के वृक्ष फले है लोभ
अधपकी कलुषता पकती कैसे
शाखाएं तो मन में;झुकती कैसे ?
कुछ एक डालियां टूटी
फूटते नये अंकुरण
भुखमरी के हुए शिकार
पगडण्डी के उस पार ।।

@राम केश मिश्र

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