नारी कहे  पुकार के
  इस पुरे संसार से,
मैं तो जन-जन से जुड़ी  हूँ,
  तो क्यों खुद को ढूंढ रही हूँ,
अस्तित्व न होने की चुभन है,
  जबकि मुमकिन ना मुझ बिन सृजन है,
खुद में बहुत सा रूप बसाया मैंने,
  हर रूप में विलक्षणता दिखाया मैंने,
बाबुल के आँगन में दौड़ी,
  राखी की भी बाँधी डोरी,
ब्याह के बाद मैं  रीत बनी  हूँ,
  अपने पिया की प्रीत बनी हूँ,
ममता को मन में बसाया मैंने,
  संतान रत्न भी पाया मैंने,
हर रूपों में  ही  किरदार निभाया,
  एक नया संस्कार बनाया,
फिर क्यों  खुद को ढूंढ रही हूँ,
  जबकि मैं तो जन-जन से जुड़ी  हूँ, 
नारी कहे पुकार के
  इस पुरे संसार से। 
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