गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

फिर नया साल।कविता ।

कविता।फिर नया साल ।

फिर नया साल
पल्लवित होंगी झूठी आशाएँ
सस्ती शुभकामनायें
कुछ आधी-अधूरी यादें
कुछ दूर हुए है रिस्ते
धूमिल होता वो प्यार
पगडण्डी के उस पार

भरोशा किसका?
बदल गयी प्रथाएँ
हृदय व्यथा उपजाये
सम्बन्धों में इठलाती दूरी
अब दुःखों की होगी अदला-बदली
वो नये नये उपहार
पगडण्डी के उस पार

चलो खरीदें आंसू
हृदय हुआ जा रहा बंजर
फिर नही मिलेगा अवसर
अंकुरित करनी होगी भावनाएं
इंद्रधनुषी कुछ रूप सलोने
फिर लौटायेंगे उपहार
पगडण्डी के उस पार

@राम केश मिश्र

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