बुधवार, 23 दिसंबर 2015

निर्भया : a heart touching poem by Alok Upadhyay

सहमी सी हैं तितलियां सभी,
खौफ में हर परिन्दा है…
नकाब इन्सां का चेहरे पे,
यहांहर शख्स दरिन्दा है…
निर्भया माफ कर देना,
कि हम बहुत शर्मिन्दा है…
बेटीयों घर से निकलना ना,
कि अभी अफरोज जिन्दा है…!!!
by
Alok upadhyay

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