शनिवार, 19 दिसंबर 2015

आज की नारी

आज की नारी न अबला न बेचारी……
अब शस्त्र उठाने की है बारी,
रण मे डटकर लङी थी वो,
ये बात इतिहास ने भी जानी,
आज की नारी न अबला न बेचारी……..

चाँद को छुआ है उसने,
आसमान मे भी परचम लहराया है,
अपने हौसले का दम उसने हमे दिखाया है,
आज की नारी न अबला न बेचारी…….

अब शस्त्र उठाने की है बारी,
रण मे डटकर वो लङी,
ये बात सबने जानी है,
नही है क्षेत्र ऐसा कोई जहाँ नही है नारी,
न है दुख की देवी न है अबला नारी,
आज के भारत की आज है शसक्त नारी !

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