मै राह चला हूँ प्रीत मिलन की
  मुझे चलना है बस चलने दो ||
प्रीत लगी जब दिव्य ओज से
  उस ओज मे जाकर मिलना है
  मोह पतंगे को ज्वाला का
  ज्योति मे जाकर जलना है
  मन को निर्मल करने मे
  तन जलता है तो जलने दो |
  मै राह चला हूँ प्रीत मिलन की
  मुझे चलना है बस चलने दो ||
हर एक बूँद का लक्ष्य नही
  सागर मे विलीन हो जाना
  जीवन दायिनि बनने के लिए
  कुछ का घरा मे खो जाना
  जीवन देने की चाहत मे
  अस्तित्व खोता है तो खोने दो |
  मै राह चला हूँ प्रीत मिलन की
  मुझे चलना है बस चलने दो ||
शून्य से द्विगुणित होकर
  हर अंक शून्य बन जाता है
  श्याम विविर मे मिल करके
  हर रंग श्याम बन जाता है
  श्याम मिलन की चाहत मे
  रंग ढलता है तो ढलने दो |
  मै राह चला हूँ प्रीत मिलन की
  मुझे चलना है बस चलने दो ||
दरिया को पार करने मे
  पैरो पर कीचड़ लगता है
  लेकिन पथिक कब राहो की
  कठिनाइयो से डरता है
  मिट्टी की इस काया पर
  कीचड़ लगता है तो लगने दो |
  मै राह चला हूँ प्रीत मिलन की
  मुझे चलना है बस चलने दो||

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