शनिवार, 19 दिसंबर 2015

नाजायज

वही कोख वही प्राण पाया
पूर्ण नियम से आण पाया
फिर खता क्या हुई मुझसे
क्यो नाजायज नाम पाया
एक पिता एक माता मेरी
उनका मेल पहचान मेरी
सब सा मासूम मै भी दिखता हू
क्यू गलियो में फिर मै बिकता हू
ठुकरा दिया क्यू मुझे समाज ने

निर्दयी कठोर झूठे रिवाज ने
जन्म देते वक्त न सोचा
अपनाने मे क्यू छिपते लीवा जमे
यौवन के बढते जोश मे
क्यो नही थे तुम होश में
क्यू रिश्ता अपना निभा ना पाये
समाज के सामने अपना ना पाये
हे समाज! क्या रिवाज तेरा
गलती किसी की क्या कसूर मेरा
अपनी मर्जी से ना मै आया हू
जायज रूप ही मै लाया हू
चन्दन में लिपटे रहे सर्प
चन्दन विषैला नही होता
नाजायज होते माता पिता
बच्चा नाजायज नही होता
जब एक खता तुम कर बैठे
गलत राह अपना कर के
क्यू गुनाह ओर तुम करते हो
नन्ही सी जान ठुकरा कर के
पाल पोस लो मुझको ही
मै तेरा कलंक मिटा दूंगा
अपने अच्छे कर्मो से
तेरी कोख का मान बढा दूंगा

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