वही कोख वही प्राण पाया
  पूर्ण नियम से आण पाया
  फिर खता क्या हुई मुझसे
  क्यो नाजायज नाम पाया
  एक पिता एक माता मेरी
  उनका मेल पहचान मेरी
  सब सा मासूम मै भी दिखता हू
  क्यू गलियो में फिर मै बिकता हू
  ठुकरा दिया क्यू मुझे समाज ने
निर्दयी कठोर झूठे  रिवाज ने
  जन्म  देते वक्त न सोचा
  अपनाने मे क्यू छिपते  लीवा जमे
  यौवन के बढते जोश मे
  क्यो नही  थे तुम  होश में
  क्यू रिश्ता अपना निभा ना पाये
  समाज के सामने  अपना  ना पाये
  हे समाज! क्या रिवाज तेरा
  गलती किसी की क्या कसूर मेरा
  अपनी मर्जी से ना मै आया हू
  जायज रूप  ही मै लाया हू
  चन्दन में  लिपटे रहे  सर्प
  चन्दन विषैला  नही  होता
  नाजायज होते माता पिता
  बच्चा नाजायज नही होता
  जब एक खता  तुम कर बैठे
  गलत राह  अपना कर के
  क्यू गुनाह ओर तुम करते हो
  नन्ही सी जान ठुकरा कर के
  पाल पोस लो मुझको ही
  मै तेरा कलंक  मिटा दूंगा
  अपने अच्छे कर्मो से
  तेरी कोख का  मान बढा दूंगा 

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