सोमवार, 28 दिसंबर 2015

अतीत की झंकार

अतीत की झंकार से न डर
ये तेरा भविष्य नहीं
इससे जुड़ा है ये मगर
कोई प्रलाप-विलाप न कर
महत्वकांशा, याद रख लक्ष्य
कठिन परिश्रम की बागडोर थाम
पग पग चुनौती को आलिंगन दे
अब अधिक विचार न कर

अनुजो से सीख, प्रकृति से सीख
संजो ले मन मे निष्ठा कर्म के लिए
मस्तिस्क मे कई भूमण्डल से है
विचारो का समंदर
फिर बना उसका अस्तित्व
क्योकि ये भी है लहर डर लहर
अतीत की झंकार से न डर

उठ! जो छोड़ चला, मुख मोड़ चला
क्यों स्मरण करे उसे प्रहर दर प्रहर
कल स्वागत कर रहा है तेरा
मत ठुकरा, ये अलग ही है मंजर
जो पीड़ा का कारण बना
सोच वो सिर्फ था एक भॅवर
मुक्त कर अपने को इससे
अतीत की झंकार से न डर

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