मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

मै भारत हूँ

मै भारत हूँ

मुझमे क्या देखते हो
मैं वाही दिखाता हूँ जो तुम देखना चाहते हो
मै सोने की चिड़िया था, हूँ और सदैव रहूँगा
क्योकि मै संस्कृति और सभ्यता का धोतक हूँ
इस दुनिया में देव भूमि मुझ में ही निहित है
मुझ से ज्यादा धनवान इस दुनिया में कौन हो सकता है
देखो मेरी पावन धरा को कभी मेरी नजर से
खुद को चाय वाला कहने वाला मामूली इंसान भी
लाखो के सूट पहन कर शान शौकत दिखा सकता है
मेरी गरीबी पर मत जाना, वो तो मेरा स्वरुप ही ऐसा है
अमीरी होकर भी बहुत गरीब, दीन दुर्बल दिखता हूँ
और मेरी गर्रीबी में कितने रत्न छुपे है समझ से परे है
ठीक जैसे किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व,
अच्चा दिखने वाले व्यक्ति का व्यक्तिव अच्छा हो जरुरी नही
या अच्छे व्यक्तित्व वाला दिखने में भी अच्छा ही जरुरी नही
बस ऐसा ही मेरा भी हाल है इस दुनिया में,
कही व्यक्ति सही मिलता, तो कभी व्यक्तित्व
तालमेल की कमी से आज तक इस हाल में हूँ
कभी नजर धोखा खा जाती है, कभी नजरिया
बात वाही आकर टिकती है तालमेल की
यही तो नहो बैठ पाता, कभी बैठने की नौबत आ भी जाए तो
हमारे बुद्धिजीवी टांग पकड़कर खींच लेते है !!
बची हुई कसर हमारा जनसंचार माध्यम (मीडिया) पूरी कर देता है
अब दोष किसे दूँ …इससे अच्छा है खुद ही दोषी बन जाता हूँ !!
बस जैसा भी हूँ …अब …… ऐसा ही हूँ …!!
हाँ मै ही भारत हूँ ….!! हाँ मै ही भारत हूँ ….!!हाँ मै ही भारत हूँ ….!!
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डी. के. निवातियाँ

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