गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

कन्या : a reality poem by ALOK UPADHYAY

जो कन्या ना होती तो माता न बनती
हमारी कोई जन्म दाता न बनती
न भाईदूज हमको मिठाई खिलाती
कौन रक्छा बंधन मे कलाई सजाती
नेग के लिए कौन रूठती मचलती
सगुन के पलो मे न सजती सभलती
वहन दर्द का आह फिर कैसे बुनती
जे मौसम कभी भी न आता बसंती
जो कन्या न होती तो माता न बनती
हमारी कोई जन्म दाता न बनती……………1
बुआ जी बहुत तुमने चाहा है हमको
छुड़ाया हमी से दुख दर्द को गमों को
हरेक चीज बाजार से हमको लाई
टोफी गुलाव जामुन हलुआ मिठाई
पढ़ना सिखाया लिखना सिखाया
सिखाए पहाड़े सिखाई है गिनती
जो कन्या ना होती तो मॉता न बनती
हमारी…………………………………………2
हमे कौन पालती खिलाती पिलाती
लोरी सुनाती पलना हिलाती
जो हम रूठ जाते तो हमको मनाती
मौसी कहॉ कैसे चलना सिखाती
हमारे लिए करती ईश्वर से बिनती
जो कन्या न होती तो मॉता न बनती
हमारी …………………………………..3
पल्लो हिलाती है गर्मी मे सजनी
सुवह साझ प्यारी लगे हमको रजनी
मधुरता का उपहास मत करना यारो
कन्या जन्मने से पहले न मारो
अगर भ्रूण हत्या यूं होती रहेगी
धरा पाप का भार कैसे सहेगी
भूकम्प आवेगे ओले गिरेगे
धरे अन्न मे लोग भूखे मरेगे
बे मौसम बरषात बे मौसम आधी
रोके से रुक न सकेगी बरवादी
यह प्रकृति नही दंड लेकर के हनती
जब हनती बाते न दुनिया की सुनती
जो कन्या न होती तो माता न बनती
हमारी…………………………………………4
-Alok upadhyay

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