मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

तन्हाई

तन्हाइ– जब भी आसमान मे तारे चमकते है तो तेरी याद आति है ।
जब कोइ मीठी सी गीत सुनाता है तो तेरी याद आती है ।
बचपन का वह पढ़ना, बात -बात पे यू लड़ना ,
रात मे साया देखके तेरा यु डरना , हर वह बात दिलाता है मूझे याद,
के तू हमेसा से है हरपल मेरे साथ, तास्बिर बनके ही सही , जानता हू तू है ही नही।
पर जाहा भी तू है मेरे बातो पर है न यकी।
देख मै कितना हो गया हू बूढ़ा , पर अब भी याद है थोड़ा-थोड़ा ,
तूने मागीं थी मुझसे एक चुटकी सिदूरं पर में तब तुझे दे न पाया।
गुस्से से तूने मेरा हाथ छुराया, नदी मे डूब जाने का बहाना बनाया,
पर मै था इतना ही नकारा की समझ नसका तेरा इसारा ,
खेल-खेल मे ही तूने छीन ली मुझसे मेरा सहारा।
देख आज मै हू एकदम अकेला , तेरी यादो ने ही मुझे साम्हाला।
इतंज़ार कर रहा हू की उस पल का कब बुलाए ऊपरवाला।
लेकर जाउगां सिदूर हाथ मे मेरा इतंज़ार करना , यहॉ न सही
स्वर्ग मे ही सही विवाह हमे तो है करना।

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here तन्हाई

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें