ग़ज़ल।यहा इज्जत नही मिलती।
मुहब्बत में गुनाहों से जिन्हें मोहलत नही मिलती ।
  खुदाई है खुदा की पर कभी रहमत नही मिलती । 
छिपी मासूम चेहरों पर गुनाहों की कहानी है ।
  अदाओं की नुमाइस से इन्हें फ़ुरसत नही मिलती । 
यक़ीनन ढह ही जायेगी हमारे ख़वाब की मंजिल ।
  मुझे मालूम है फिर भी तनिक राहत नही मिलती । 
सहेगे और भी सदमे तुम्हारी चाह में बेबस ।
  चला मैं दूर जाऊँगा यहा हसरत नही मिलती । 
पलटकर देखने की तुम करोगे लाख़ कोशिस पर ।
  हुई बेज़ार नजरो से कभी जन्नत नही मिलती । 
बहुत नाज़ुक तज़ुर्बे है तुम्हारे प्यार के ‘रकमिश’ ।
  शहर से जा रहा तेरे यहा इज्ज़त नही मिलती । 
@राम केश मिश्र
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