रविवार, 27 दिसंबर 2015

तुम हो।

मेरी बातो मे तुम हो,
साँसो मे तुम हो,
गजल मे तुम हो,
हवा की लहरो मे तुम हो,
जब से तुमको देखा सनम,
मेरे दिल मे बस तुम हो…
आँखे तेरी नुरीली,
होठ तरी रसीली,
गाल जैसी है तेरी,
देखकर वाह दिल से निकले,
जब से तुमको देखा सनम,
मेरे दिल मे बस तुम हो…
जब पहने तु रंग सुनेहरी,
मन को ऐसे भा जाती हो,
जैसे अँधेरी रातो मे,
उजाला ले आती हो,
जब से तुमको देखा सनम,
मेरे दिल मे बस तुम हो…
आँखे अब क्यूँ ढुँढती है तुझे,
हर बेचैनी की वजह बन गई तुम हो,
मेरे दिल की धड़कन बम गई तुम हो,
रातों की निंदे बन गई तुम हो,
जब से तुमको देखा सनम,
मेरे दिल मे बस तुम हो…
अब तो लगता ना जी सकेगे हम,
मेरे जीने की वजह बन गई तुम हो,
आजा मुझे अपना बनाले,
अगर ना मिली तुम तो,
मेरे मरने की वजह बनजाओंगी तुम,
जब से तुमको देखा सनम,
मेरे दिल मे बस गई तुम हो…!
@md.juber husain

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here तुम हो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें