गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

देर कर देते हो..

हमेशा देर ही करता था वो…
हमेशा…
अक्सर मेरा हाथ थाम कर
शाम को ढलता सूरज देखता..
कभी मुझमे उतर कर
कविता बन जाता..
कभी मेरे गुस्से को
शरबत की तरह पी जाता..
दिन दर दिन हमसफर सा
परछाई सा मुझसे जुड़ा
कब मेरा हिस्सा बन जाता
मेरी उम्मीद ए जिन्दगी बन
अन्धेरे वीरानो मे रोशनी बन जाता..
एक लम्बा इन्तजार हमेशा
साथ मेरे चलता..
आए हो फिर इतनी देर से
दिल तार तार है
टूटा हुआ है…
अपनी चीजे सम्भाल कर रखा करो न..
तुम न…
हमेशा देर कर देते हो..

..रू..

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