शनिवार, 26 दिसंबर 2015

नारी के विचार

डर लगता है आज घर से निकलने मे
कही कोई छिन ना ले इज्जत से जीने काहक
दूजे पर भरोसा मै करू कैसे
अब तो अपनो पर भी होता है शक
घर ना मेरा मायका, ना ससुराल मेरा कहलाया है
ना धन मेरा ना धरती मेरी
एक इज्जत थी जो मेरी है
अब उस पर भी दाग लगाया है
मै अर्द्ध शक्ति जग की हू
पर जग समझे पैरो की जूती
क्यू नही देते मेरा हक मुझको
पुरूषार्थ कहानी है झूठी
मर्द हो तो इज्जत करो नार की
ये ही तुम्हारी जननी है
ये बहन बेटी पत्नी है तुम्हारी
ये सीता है तो राम बनो
वरना ये दुर्गा भी बननी है
रखा सर तेरे चरणो मे तो
प्रेम मेरा ये सच्चा है
कमजोर नही हू मै ए नर
तू मेरे सामनेबच्चा है
मेरी इज्जत को ना हाथ लगाना
मै तेरा अस्तित्व मिटा दूंगी
मै दोस्त हू, प्रेम मूर्त भी हू
तेरा घर भी स्वर्ग बना दूंगी
बहुत सह लिया आजतक
अब मै हथियार उठा लूंगी
अपने सतीत्व की रक्षा की खातिर
जग को श्मशान बना दूंगी ।

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