शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

हम तो ऐसे ही है।

जिस राह पर रखे हमने कदम
वो राह ही हमारी ना थी
मंजिल को पाने का जुनून कम ना था
बस वो मंजिल ही हमारी ना थी
किस्मत को बुरा बोलू तो कैसे
कुछ पल खुशियोके दिये थे जो ऐसे
रास्ते बदल देना मेरी फितरत हो गई
ख्वाब तो टूटे पर बाकी थी उम्मीद
बस एक हिम्मत ही थी
जो अब तक हमने हारी ना थी
हम तो सिकन्दर है गरीबी के
सडको पर चलने मे भी शान समझते है
जो ठुकरा दे हमे
उसको तो हम नादान समझते हैहै
हमतो जीते भी है अपने लिए
और मरने को तैयार भी है
हम भोले भी है फिदरत से
थोडे से होशियार भी है
गम की क्या औकात जो मिटा दे हमे
काटों को ही तो हम बागान समझते है
ख्वाबो की क्यारी को सिचा है मेहनत से
फूल खिले या ना खिले उनकी मर्जी
किस्मत का डण्डा हम पर नही पडता
ना खुदा से लगाते है कोई अर्जी
हम ईष्र्या मे जलकर नही जीते
बुराईओ पर होठो को नही सीते
हम बादशाह है अपनी जिंदगी के
घूँट घूटकर तो हम एक पल नही जीते ।

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