बेरोजगार हूँ l रोजगार मिले तो कुछ सुकून मिले
  भले ही कोमल हाथ सख्त हो जाए,
  छाले पड़ जाए,
  काले हो जाए चाहे मेरे कपड़े l
  नीरस जिन्दगी में कुछ कर गुजरने का जुनून मिले l
  बेरोजगार हूँ l रोजगार मिले ——–
इन्सान जो सोचता हे बो होता नहीं,
  और जो होता हे फिर उसे सोचने लगता है l
  मैं नहीं चाहता कि बईमानी के दौर में-
  मुझे मिले थोक के भाब रोजगार,
  भले हे बो परचून मिले l
  बेरोजगार हूँ l रोजगार मिले ——–
जानता हूँ ! जब बात नौकरी कि होती है
  तो बात मालिक की होती है l
  उस के बनाये हुए उसूलों कि होती है l
  तैयार हूँ ! खुद के वनाये उसूलों से समझोता करने को,
  और मैं यह भी नहीं चाहता-
  कि सीधा-साधा हो मेरा मालिक,
  भले हे बो अफलातून मिले l
  बेरोजगार हूँ l रोजगार मिले ——–
पंडित हूँ ! शायद इस लिए लालची हूँ l
  नौकरी मिले तो बात छौकरी कि हो
  चाहता हूँ एसी मिले !
  जिसे न लताड़ा हो निराशा भरी लम्बी- लम्बी लाइनों ने
  नाजों से पली इकलौती-
  किसी मालिक कि मासूम मिले l
  बेरोजगार हूँ l रोजगार मिले ——–
संजीव कालिया
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