रविवार, 24 जनवरी 2016

रोजगार मिले तो सुकून मिले

बेरोजगार हूँ l रोजगार मिले तो कुछ सुकून मिले
भले ही कोमल हाथ सख्त हो जाए,
छाले पड़ जाए,
काले हो जाए चाहे मेरे कपड़े l
नीरस जिन्दगी में कुछ कर गुजरने का जुनून मिले l
बेरोजगार हूँ l रोजगार मिले ——–

इन्सान जो सोचता हे बो होता नहीं,
और जो होता हे फिर उसे सोचने लगता है l
मैं नहीं चाहता कि बईमानी के दौर में-
मुझे मिले थोक के भाब रोजगार,
भले हे बो परचून मिले l
बेरोजगार हूँ l रोजगार मिले ——–

जानता हूँ ! जब बात नौकरी कि होती है
तो बात मालिक की होती है l
उस के बनाये हुए उसूलों कि होती है l
तैयार हूँ ! खुद के वनाये उसूलों से समझोता करने को,
और मैं यह भी नहीं चाहता-
कि सीधा-साधा हो मेरा मालिक,
भले हे बो अफलातून मिले l
बेरोजगार हूँ l रोजगार मिले ——–

पंडित हूँ ! शायद इस लिए लालची हूँ l
नौकरी मिले तो बात छौकरी कि हो
चाहता हूँ एसी मिले !
जिसे न लताड़ा हो निराशा भरी लम्बी- लम्बी लाइनों ने
नाजों से पली इकलौती-
किसी मालिक कि मासूम मिले l
बेरोजगार हूँ l रोजगार मिले ——–

संजीव कालिया

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