रविवार, 31 जनवरी 2016

और हम लौट आए

निकले थे घर से घूमने,
मगर दिल को घुमा न पाए l
और हम लौट आए ——-

इंडिया गेट देख रहे थे लोग,
पढ़ रहे थे, कब बना और किस ने बनबाया l
एक तरफ़ शिवाजी का पुतला,
तो दूसरी तरफ़ पांच सितारा ताज l
बो सितारे भी टिमटिमा न पाए ll
और हम लौट आए ——-

मेरिन ड्राइव में देखा,
दोस्तों को एक दूसरे में समाते हुए l
जिन्दगी का मज़ा लुटते रंग जमाते हुए l
हम तन्हा रंग जमा न पाए ll
और हम लौट आए ——-

थोड़ी सी रेत और लाखों की भीड़ जुहू चुपपाटी में l
नहाते दीखे नसीन जलबे कपड़ों कि कमी में l
बो नगे बदन भी आँखों में समां न पाए ll
और हम लौट आए ——-
नया गाँव नया नहीं,
खंडाला में खण्डहर कहाँ l
असिल्वर्ल्ड के झूले भी हमें झुला न पाए ll
और हम लौट आए ——-

बान्द्रा,शांताक्रूज में अंवार है,
फ़िल्मी सितारों का l
जिनकी एक झलक पाने के लिए दीवानी हे दुनियां l
बह सितारे भी पर्दे वाली चमक दिखा न पाए ll
और हम लौट आए ——-

यूँ तो तारामंडल में नींद आ गई थी हमें l
खवाव भी देखे हम ने पल भर के लिए,
उस झूठी रात में भी कम्वख्त को भुला न पाए ll
और हम लौट आए ——-

रात की रौशनी में वाकये,
अच्छा लगता है यह शहर l
देखना चाहते थे बहकती हुई दुनियां l
बिन साथी डिस्को जा न पाए ll
और हम लौट आए ——-

अपना शहर अपने लोग सब कुछ जाना पह्चाना l
हकीकत में वदलेगे खवाव जब साथ देगा ज़माना l
यह सच्चाई झूठला न पाए ll
और हम लौट आए ——-

संजीव कालिया

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