निकले थे घर से घूमने,
  मगर दिल को घुमा न पाए l
  और हम लौट आए ——-
इंडिया गेट देख रहे थे लोग,
  पढ़ रहे थे, कब बना और किस ने बनबाया l
  एक तरफ़ शिवाजी का पुतला,
  तो दूसरी तरफ़ पांच सितारा ताज l
  बो सितारे भी टिमटिमा न पाए ll
  और हम लौट आए ——-
मेरिन ड्राइव में देखा,
  दोस्तों को एक दूसरे में समाते हुए l
  जिन्दगी का मज़ा लुटते रंग जमाते हुए l
  हम तन्हा रंग जमा न पाए ll
  और हम लौट आए ——-
थोड़ी सी रेत और लाखों की भीड़ जुहू चुपपाटी में l
  नहाते दीखे नसीन जलबे कपड़ों कि कमी में l
  बो नगे बदन भी आँखों में समां न पाए ll
  और हम लौट आए ——-
  नया गाँव नया नहीं,
  खंडाला में खण्डहर कहाँ l
  असिल्वर्ल्ड के झूले भी हमें झुला न पाए ll
  और हम लौट आए ——-
बान्द्रा,शांताक्रूज में अंवार है,
  फ़िल्मी सितारों का l
  जिनकी एक झलक पाने के लिए दीवानी हे दुनियां l
  बह सितारे भी पर्दे वाली चमक दिखा न पाए ll
  और हम लौट आए ——-
यूँ तो तारामंडल में नींद आ गई थी हमें l
  खवाव भी देखे हम ने पल भर के लिए,
  उस झूठी रात में भी कम्वख्त को भुला न पाए ll
  और हम लौट आए ——-
रात की रौशनी में वाकये,
  अच्छा लगता है यह शहर l
  देखना चाहते थे बहकती हुई दुनियां l
  बिन साथी डिस्को जा न पाए ll
  और हम लौट आए ——-
अपना शहर अपने लोग सब कुछ जाना पह्चाना l
  हकीकत में वदलेगे खवाव जब साथ देगा ज़माना l
  यह सच्चाई झूठला न पाए ll
  और हम लौट आए ——- 
संजीव कालिया
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