शनिवार, 30 जनवरी 2016

ये तुम तो नहीं हो.......

आंखो के पीछे से, पलकों के नीचे से ,

सपने ही सपने में, अपने ही अपने में

हौले से मुझको पुकारा किसी ने

ये मेरा भरम है या सच में कोई है

मैं अनजान हूँ क्यों, अगर वो यहीं है,

मेरे पास तो सिर्फ खामोशियाँ हैं

और मुझमे समाई ये तनहाइयाँ हैं

हाँ यादो के थोड़े से लम्हे यहाँ पर

मेरे पास बैठे हैं चुपके से आकर

हवा भी तो चुप है मुझे ये पता है

और इसके अलावा न कोई यहाँ है

शायद शरारत है खामोशियों की

या कोई अदा है ये तनहाईयों की

कहीं यादों की किसी गली से निकल कर

ये तुम तो नहीं हो, ये तुम तो नहीं हो, ये तुम तो नहीं हो ………

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