बहुत भये संस्कार लोगो में आज साधू वेश धरने लगे !
  जाके देखो हरिद्धार, कांशी गिनती में साधू बढ़ने लगे !!
क्यों करे कर्म कोई जब फल बिन मेहनत मिलने लगे  !
  फल फूल रहा व्यापार आजादी का लोग घर छोड़ने लगे  !!
एक हाथ में लोटा, एक में सोटा गेरुआ पहन चलने लगे  !
  बनके भगवान के भक्त लोगो को मासूमियत से ठगने लगे  !!
जो जितना अय्यास हुआ चर्चे उतने उसके बढ़ने लगे !
  किस्मत से हुई अगर जेल, अफसर नेता भी पूजने लगे !!
बहुत किये जुर्म जिसने समाज में जमकर लोगो को सताने लगे  !
  बन गये वो ही सन्यासी फिर, लोग उन्हें सर आँखों बिठाने लगे !!
ना पूछो बात अंधे भक्तो की किस कदर लोग भटकने लगे
  मात पिता की सुध नही जिन्हे वो नाम संतो के जपने लगे !!
देख कर हालात जमाने के आंसू “धर्म” के निकलने लगे
  पढ़े लिखे नौजवान भी जब पाखंडो के फेर में पड़ने लगे !!
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  डी. के. निवातिया…………….XXX

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