बीते युग का अनुयायी अब तो गुरु घंटा कहलाये है समर्थन l
  जो पहले हुआ करता था लकीर का फकीर कभी,
  अब तो फकीर को भी लकीर दिखलाए है समर्थन l
बदला है इस ने ज़माने के दस्तूर को,
  हर साल मतदान करबाए हे समर्थन  l          
रंग डाला हर नेता को अपने ही रंग में,
  हर किसी को नंगा नाच नचाए है समर्थन l
हाथ को हथौड़ा समझ शांत रहा कुछ दिन,
  फिर तो चक्कर के चक्कर भी कटबाए है समर्थन l
सिर्फ तेरह दिन की खुशबु में बिखरा फूल,
  एसी आंधी लाए है समर्थन l
एक ही बहुत था उठा –पलट के लिए,
  न जाने कहा से तीन तीन हमशकल लाए है समर्थन l
जो सत्ता में रह कर पैसे बटोरे,
  बह हे आन्तरिक समर्थन l
बाहिर रह कर डंडे के जोर पर कम करबाए,
  बह हे बाहरी समर्थन l
जब चाहा टांग खींच ली,
  उस का नाम हे मुददों पर आधारित समर्थन l
ग़र यही हल रहा तो बह दिन दूर नहीं,
  जब सेना के हाथ बागडोर थमाए है समर्थन l
संजीव कालिया
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