रविवार, 24 जनवरी 2016

समर्थन

बीते युग का अनुयायी अब तो गुरु घंटा कहलाये है समर्थन l
जो पहले हुआ करता था लकीर का फकीर कभी,
अब तो फकीर को भी लकीर दिखलाए है समर्थन l

बदला है इस ने ज़माने के दस्तूर को,
हर साल मतदान करबाए हे समर्थन l

रंग डाला हर नेता को अपने ही रंग में,
हर किसी को नंगा नाच नचाए है समर्थन l

हाथ को हथौड़ा समझ शांत रहा कुछ दिन,
फिर तो चक्कर के चक्कर भी कटबाए है समर्थन l

सिर्फ तेरह दिन की खुशबु में बिखरा फूल,
एसी आंधी लाए है समर्थन l

एक ही बहुत था उठा –पलट के लिए,
न जाने कहा से तीन तीन हमशकल लाए है समर्थन l

जो सत्ता में रह कर पैसे बटोरे,
बह हे आन्तरिक समर्थन l

बाहिर रह कर डंडे के जोर पर कम करबाए,
बह हे बाहरी समर्थन l

जब चाहा टांग खींच ली,
उस का नाम हे मुददों पर आधारित समर्थन l

ग़र यही हल रहा तो बह दिन दूर नहीं,
जब सेना के हाथ बागडोर थमाए है समर्थन l

संजीव कालिया

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