‘चिराग’ उन्हें फीका लगा होगा 
हमने जो ‘दीपक’ जलाया अभी
  
खुशियाँ भी कुछ कम लगी होंगी
खुल के हम जो ‘मुसकराये’ अभी
  
गफ़लत में थे देख परतें ‘उदास’
आह भर भर के वो पछताए अभी
  
कद्र कर लेते रिश्ते की थोड़े दिनों
जब फंसे थे मुसीबत में हम कभी
  
तब उड़ाई हंसी ज़ोर से हर जगह
मानो दिन न फिरेंगे हमारे कभी
  
ऐसा भी न था जानते कुछ न ‘वो’
रात के बाद दिन जग की रीत यही
  
– मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’
Hindi poem on success, failure, day night, mithilesh, poet
      Read Complete Poem/Kavya Here   रात के बाद    
हमने जो ‘दीपक’ जलाया अभी
खुशियाँ भी कुछ कम लगी होंगी
खुल के हम जो ‘मुसकराये’ अभी
गफ़लत में थे देख परतें ‘उदास’
आह भर भर के वो पछताए अभी
कद्र कर लेते रिश्ते की थोड़े दिनों
जब फंसे थे मुसीबत में हम कभी
तब उड़ाई हंसी ज़ोर से हर जगह
मानो दिन न फिरेंगे हमारे कभी
ऐसा भी न था जानते कुछ न ‘वो’
रात के बाद दिन जग की रीत यही
– मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’
Hindi poem on success, failure, day night, mithilesh, poet

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