हर रोज उठने वाले इन विवादों और झगङों का असर वैसे तो देशव्यापी है ही पर सालों की इस लङाई का असर इतनी गहराई तक जा पहुंचेगा , ये कभी नहीं सोचा था। इंसानी शरीर की मूल ईकाई कही जाने वाली ” कोशिका” तक ये लङाई पहुंच चुकी है। देखिए!!! खुद ही देख लीजिए ये तमाशा और और समाजिक लङाई का शरीर पर कुप्रभाव ………..
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  कोशिका के बुरे हैं हाल
  उपापचय की बिगङी चाल ।
  कोशिकांगों में हुआ है झगङा
  बताओ सबसे कौन है तगङा ।।
मैं हूँ असली कार्यपालिका
  नाम है अंत: प्रद्रव्यी जालिका ।
  मेरे पास है ऐसा मंत्र
  अंत: कोशिकीय परिवहन तंत्र ।।
ज्यादा ना कर चपङ चूं
  ये ले पकङ प्रोटीन तूं ।
  मेरा नाम है राइबोसोम
  मुझसे ही तेरा रोम रोम ।।
प्यार से बोला गोल्जीकाय
  किस बात की ये हाय हाय ।
  हम सबका ये प्यारा होम
  डिक्टियो, परॉक्सि, लाइसोसोम ।।
बिन मतलब की ना दो राय
  मैं हूँ अकेला तारककाय ।
  मेरे बिन न चलेगा रथ
  मैं ही बनाऊं विभाजन पथ ।।
केंद्रक है भाई मेरा नाम
  यहीं पर होते मुख्य काम ।
  कोशिका का करता रक्षण
  और क्रियाओं पे नियंत्रण ।।
DNA, मैं सबसे महान
  मुझसे ही ये सारा जहाँन ।
  अगले वंश का करूं कल्याण
  और नई जाति का निर्माण ।।
माइटोकॉण्ड्रिया, बिजलीघर
  मुझ बिन भटकोगे दर दर ।
  ATP अणु और F1 कण
  मेरा मोहताज सबका हर क्षण ।।
बहुत हुई सबकी बकवास
  अभी करता हूँ सर्वनाश ।
  भूलो मत, मैं लाइसोसोम
  फटूंगा, जैसे एटम बॉम्ब ।।
मत करो तुम घर को भ्रष्ट
  वरना कर दूंगा सब नष्ट ।
  मिलजुल के सब काम करो
  तंत्र में कुछ नाम करो ।।
क्यों करते खुद को कमजोर
  फिर सेंधेंगे डाकू, चोर ।
  ईर्ष्या भाव में दोगे धोखा
  और दुश्मन को मिलेगा मौका ।।
मेहनत करो, रहो संग मिल कर
  वरना सब हो जाओगे बेघर ।
  कभी न सुलझेगी ये गुत्थी
  गर न बनके रहोगे मुट्ठी ।।।।
                             (रै कबीर)

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