रविवार, 31 जनवरी 2016

कोशिकांगों की लङाई.......( रै कबीर )

हर रोज उठने वाले इन विवादों और झगङों का असर वैसे तो देशव्यापी है ही पर सालों की इस लङाई का असर इतनी गहराई तक जा पहुंचेगा , ये कभी नहीं सोचा था। इंसानी शरीर की मूल ईकाई कही जाने वाली ” कोशिका” तक ये लङाई पहुंच चुकी है। देखिए!!! खुद ही देख लीजिए ये तमाशा और और समाजिक लङाई का शरीर पर कुप्रभाव ………..
………………………………………………
कोशिका के बुरे हैं हाल
उपापचय की बिगङी चाल ।
कोशिकांगों में हुआ है झगङा
बताओ सबसे कौन है तगङा ।।

मैं हूँ असली कार्यपालिका
नाम है अंत: प्रद्रव्यी जालिका ।
मेरे पास है ऐसा मंत्र
अंत: कोशिकीय परिवहन तंत्र ।।

ज्यादा ना कर चपङ चूं
ये ले पकङ प्रोटीन तूं ।
मेरा नाम है राइबोसोम
मुझसे ही तेरा रोम रोम ।।

प्यार से बोला गोल्जीकाय
किस बात की ये हाय हाय ।
हम सबका ये प्यारा होम
डिक्टियो, परॉक्सि, लाइसोसोम ।।

बिन मतलब की ना दो राय
मैं हूँ अकेला तारककाय ।
मेरे बिन न चलेगा रथ
मैं ही बनाऊं विभाजन पथ ।।

केंद्रक है भाई मेरा नाम
यहीं पर होते मुख्य काम ।
कोशिका का करता रक्षण
और क्रियाओं पे नियंत्रण ।।

DNA, मैं सबसे महान
मुझसे ही ये सारा जहाँन ।
अगले वंश का करूं कल्याण
और नई जाति का निर्माण ।।

माइटोकॉण्ड्रिया, बिजलीघर
मुझ बिन भटकोगे दर दर ।
ATP अणु और F1 कण
मेरा मोहताज सबका हर क्षण ।।

बहुत हुई सबकी बकवास
अभी करता हूँ सर्वनाश ।
भूलो मत, मैं लाइसोसोम
फटूंगा, जैसे एटम बॉम्ब ।।

मत करो तुम घर को भ्रष्ट
वरना कर दूंगा सब नष्ट ।
मिलजुल के सब काम करो
तंत्र में कुछ नाम करो ।।

क्यों करते खुद को कमजोर
फिर सेंधेंगे डाकू, चोर ।
ईर्ष्या भाव में दोगे धोखा
और दुश्मन को मिलेगा मौका ।।

मेहनत करो, रहो संग मिल कर
वरना सब हो जाओगे बेघर ।
कभी न सुलझेगी ये गुत्थी
गर न बनके रहोगे मुट्ठी ।।।।
(रै कबीर)

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here कोशिकांगों की लङाई.......( रै कबीर )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें