रविवार, 24 जनवरी 2016

सपनो के महल

वो कहते है ये करने से
वो करने से इंकलाब आएगा
पर अगर जागेंगे ही नहीं
तो सपनो में कौनसा खलल पड़ जायेगा
बंध आँखों से तो
फिर हर कोई महल बनाएगा
सपनो के चूल्हे जलेंगे
अरमानो के पकवान पकेंगे
पर जब सच्च में भूख लगेगी
तो सपनो से पेट कहाँ भर पायेगा
चिलचिलाती धुप में ठंडक
कौनसा सपना लाएगा
यूँही गर सपनो की दुनिया में खोये रहोगे
T.V., internet
जैसी technology में कैद रहोगे
तो इन रंगिनिओ के पीछे
लोगों के दर्द कहा पढ़ पाओगे
ज़िन्दगी की सच्चाई के
रूबरू कैसे आओगे
इन खयालो की रंगीन दुनिया से
कब तक जी बहलाओगे
इन सपनो के चूल्हो पर
कितने इंकलाब के खाब पकाओगे
कब तक खुद को बहलाओगे
कब तक उठो बोलो कब तक कब तक

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