मंचला  ये मन चला न जाने कैसी खोज में ,
  ये मन ही मन में डूबता न जाने कैसी सोच में ,
  मंचाला  ये मन चला  न जाने कैसी खोज में।
धरा -धरा गगन – गगन, पहाड़ मार्ग और वन ,
  शहर-शहर, गली-गली, है मन के मन में खलबली,
  न जाने कैसी सोच है, ये सोचता चला गया,
  न जाने कैसी खोज है, खोजता चला गया,
  न कुछ मुझे बता रहा, न लब जरा हिला रहा,
  न जाने मेरा मन ही क्यूँ मुझी से कुछ छीपा रहा,
  इधर उधर भटक रहा, न जाने कैसी खोज में,
  ये मन ही मन में डूबता न जाने कैसी सोच में,
  मंचला ये मन चला न जाने कैसी खोज में।
कभी कभी मुझे लगे ये बावला सा हो गया,
  कभी कभी मुझे लगे ये सरफिरा सा हो गया,
  कभी लगा है कुछ दिखा, नहीं ये मन का भ्रम ही था,
  कभी लगा है कुछ मिला, नहीं ये मन का भ्रम ही था,
  है होश ये खोये हुए, न जाने कैसे जोश में,
  मंचला ये मन चला न जाने कैसी खोज में,
  ये मन ही मन में डूबता, न जाने कैसी सोच में। 

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें