उन गुज़रे हुए पलों से,
  इक लम्हा तो चुरा लूँ…
  इन खामोश निगाहों मे,
  कुछ सपने तो सज़ा लूँ…
अरसा गुजर गये हैं,
  लबों को मुस्काराए हुए…
  सालों बीत गये “.ज़िंदगी”,
  तेरा दीदार किये हुए…
  खो गया है जो बचपन,
  उसे पास तो बुला लूँ…
  उन गुज़रे हुए पलों से,
  इक लम्हा तो चुरा लूँ…
जी रहे हैं,हम मगर,
  जिंदगी है कोसों दूर…
  ना उमंग रहा दिल मे,
  ना है आँखों मे कोई नूर…
  है गुमनाम सी ज़िंदगी,
  इक पहचान तो बना लूँ…
  उन गुज़रे हुए पलों से,
  इक लम्हा तो चुरा लूँ…
इंदर भोले नाथ…
  ३०/०१/२०१६

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