इबादत क्यों खाली लौट आती है मेरी?
  क्यों इस दिल की आह उस तक,
  पहुंच नही पाती मेरी?
  क्यों वो अन्जान हैं हमसे?
  क्यों फरियाद नही सुन पाते मेरी?
  सुना है वोह हर जगह होते है,
  सुना है उनकी मर्जी से ये फूल खिलते है.
  हर मन्दिर मस्जिद मे उनके होने का अह्सास है,
  उनसे ही चांद और सुरज में प्रकाश है,
  मेरी बातें, मेरी आंखो से बेजुबां समझ जाते है,
  फिर क्यों मेरी फरियाद वो सुन नही पाते मेरी?
  हर बात मुझ तक ही रह जाती है मेरी,
  फिर क्यों फरियाद नही सुन पातें मेरी?

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