रविवार, 24 जनवरी 2016

चढ़ते सूरज को सलाम

चढ़ते सूरज को सलाम

यह बही सूरज है जिसे हर सुबह सलाम होता है
जब ढलती है उम्र, तो उसका अपमान होता है l
उठते थे जो हाथ कभी सजदा करने के लिए,
उन्ही हाथो बदनाम होता हे ll
यह बही सूरज है …………..

क्या पता था ! जिन पर-
दोनों हाथो से दौलत लुटा रहा हूँ
बही कल हाथ जोड़ कर दिखाएगे l
उम्र भर समझा जिन को आँखों का तारा,
बही आँखे दिखाएगे l
ऐसे लोगों का इस दुनिया में हाल तो देखो,
अपने हे मकान में दोस्तों-
इनका अलग कमरे में इंतजाम होता है ll
यह बही सूरज है …………..

सोचा था सेवानिवर्ती के बाद,
बच्चे पापा पापा कहते आएगे
और सीने से लिपट जाएगे l
जो देखे थे सपने जवां आँखों से,
भले ही आँखे चली जाए
बो सपने तो सच हो ही जाएंगे
यह तो सोचा भी न था,
कि मीठे कीड़े खून तो खून-
हड्डियाँ भी चभा जाएँगे l

ऐ खुदा ! ग़र दे तू ताकत,
तो जला कर खाक कर दू तेरी यह दुनियां l
चूँकि हर इन्सान के अन्दर-
बसा शैतान होता है ll
यह बही सूरज है …………..

संजीव कालिया

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