शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

गजल

गजल

तुम से मिल कर इश्क मेरा फिर बेचारा न हो जाए।
आँखों से बहते पानि कहीं किनारा न हो जाए।

मिलने के वाद हि तो ये दर्द बना मेरा,
अब मिलु तो वो दर्द कहि तुम्हारा न हो जाए।

इस दर्द में भी मजा अजीब सा है यारों,
कही ये दर्द ही मेरा सहारा न हो जाए।

बड़े जतन से रख्खा है सिने में लगा कर,
क्यों करूँ दवादारु कही छुटकारा न हो जाए।

जब दर्द इतनी अनोखी है तो क्यों मिलना फिर से,
डरता हूँ कही इश्क तुम्हे दुबारा न हो जाए।
२९-०१-२०१६

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