गजल
तुम से मिल कर इश्क मेरा फिर बेचारा न हो जाए।
  आँखों से बहते पानि कहीं किनारा न हो जाए।   
मिलने के वाद हि तो ये दर्द बना मेरा,
  अब मिलु तो वो दर्द कहि तुम्हारा न हो जाए।
इस दर्द में भी  मजा  अजीब सा है यारों,
  कही ये दर्द ही मेरा सहारा न हो जाए।
बड़े जतन से रख्खा है सिने में लगा कर,
  क्यों करूँ दवादारु कही छुटकारा न हो जाए। 
जब दर्द इतनी अनोखी है तो क्यों मिलना फिर से,
  डरता हूँ कही इश्क तुम्हे दुबारा न हो जाए।
  २९-०१-२०१६ 

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