सोमवार, 25 जनवरी 2016

सच बो दिन कितना बड़ा होगा

भले ही आज शून्य है बजूद हमारा,
पर यह जरुरी तो नहीं-
कि जिन्दगी के हर दौर में यह शून्य आगे लगे
और सब शून्य हो जाए l
इंशाल्ला एक दिन ऐसा आयेगा,
जब यह शून्य आगे नहीं बल्कि पीछे लगेगा-
और एक आंकड़ा बनेगा l
यह आंकड़ा हमारी शक्सियत का आंकड़ा होगा,
जिस पर हमारी कामयाबी का नूर चड़ा होगा
सच बो दिन कितना बड़ा होगा ———–

हम ने जिस की तरफ भी हाथ बढ़ाया l
उस ने जांचा परखा और जाने दिया,
और हम भटकते रहे अन्धेरों में l
आएगा एक दिन जब छटेगें बादल,खिलेगी धुप l
और हमें ठुकराने वाला हमारी राहों में खड़ा होगा
सच बो दिन कितना बड़ा होगा ———–

शतरंज हम ने भी सीखी है,
और हम खूब जानते है-
मौत की बिसात पर घोड़े दौड़ना l
चारों खाने चित होगा दुश्मन,
जब पांसा हमारा पड़ा होगा l
सच बो दिन कितना बड़ा होगा ———–

बहुत हो चुका आंख मिचोली का खेल,
हो जाए अब दो दो हाथ l
अंदाजा नहीं है हमारी ताकत का,
धज्जियां उड़ा देंगे !
नामोनिशां मिटा देंगे !
ढूँढेगा अपने बजूद को,
जो कभी हम से लड़ा होगा l
सच बो दिन कितना बड़ा होगा ———–
सच बो दिन कितना बड़ा होगा ———–

संजीव कालिया

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here सच बो दिन कितना बड़ा होगा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें