भले ही आज शून्य है बजूद हमारा,
  पर यह जरुरी तो नहीं-
  कि जिन्दगी के हर दौर में यह शून्य आगे लगे
  और सब शून्य हो जाए l
  इंशाल्ला एक दिन ऐसा आयेगा,
  जब यह शून्य आगे नहीं बल्कि पीछे लगेगा-
  और एक आंकड़ा बनेगा l
  यह आंकड़ा हमारी शक्सियत का आंकड़ा होगा,
  जिस पर हमारी कामयाबी का नूर चड़ा होगा
  सच बो दिन कितना बड़ा होगा ———–
हम ने जिस की तरफ भी हाथ बढ़ाया l
  उस ने जांचा परखा और जाने दिया,
  और हम भटकते रहे अन्धेरों में l
  आएगा एक दिन जब छटेगें बादल,खिलेगी धुप l
  और हमें ठुकराने वाला हमारी राहों में खड़ा होगा
  सच बो दिन कितना बड़ा होगा ———–
शतरंज हम ने भी सीखी है,
  और हम खूब जानते है-
  मौत की बिसात पर घोड़े दौड़ना l
  चारों खाने चित होगा दुश्मन,
  जब पांसा हमारा पड़ा होगा l
  सच बो दिन कितना बड़ा होगा ———–
बहुत हो चुका आंख मिचोली का खेल,
  हो जाए अब दो दो हाथ l
  अंदाजा नहीं है हमारी ताकत का,
  धज्जियां उड़ा देंगे !
  नामोनिशां मिटा देंगे !
  ढूँढेगा अपने बजूद को,
  जो कभी हम से लड़ा होगा l
  सच बो दिन कितना बड़ा होगा ———–
  सच बो दिन कितना बड़ा होगा ———– 
संजीव कालिया
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