राह तकें हैं
  चूड़ी झुमके लाली
  बिंदी पायल ।
पहरेदार
  प्रेम के विरह मे
  पाषाण से हैं ।
चाँद सताए
  सितारों की लड़ियां
  अंगार सी हैं।
बिखरी लटें
  उलझी भटकती
  पलकें छुए।
रूठे काजल
  हवाओं पे बिफरे
  धीमे बहो री।
कांतिहीन है
  साज श्रृंगार सब
  निखारो तुम।
  ……..देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें